Alaknanda River Uttarakhand (अलकनंदा नदी )
नमस्कार दोस्त आज हम आपको उत्तराखंड दर्शन के इस पोस्ट में अलकनंदा नदी (Alaknanda River Uttarakhand) तथा उसकी सहायक नदियों के बारे में बताने वाले हैं यदि आप अलकनंदा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के बारे में जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक जरुर पढ़े !
History of Alaknanda River
अलकनन्दा नदी का इतिहास
अलकनंदा नदी उत्तराखंड राज्य के चमोली, जिला तथा रूद्रप्रयाग, टिहरी और पौड़ी से होकर गुजरती है।अलकनंदा नदी का प्राचीन नाम विष्णुगंगा है | अलकनंदा गंगा के चार नामों मे से एक है। चार धामों में गंगा के कई रूप तथा नाम है। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है। केदारनाथ में मन्दाकिनी तथा बद्रीनाथ में अल्कापूरी के नाम से जानी जाती है।
अलकनंदा नदी घाटी में लगभग 195 किमी तक बहती है। देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा का संगम होता हैं तथा इसके बाद अलकनंदा नाम समाप्त होकर केवल गंगा नाम रह जाता हैं । गंगा के पानी में अलकनंदा का स्थान भागीरथी से अधिक है
अलकनंदा नदी उत्तराखंड में संतोपंथ और भागीरथ खरक नामक हिमनदों से निकलती है| सतोपंथ ग्लेश्यिर पर अलकनंदा की उत्पत्ति 6 किलोमीटर ऊपर, अपने त्रिकोणीय इलाके में हुई है। त्रिकोणीय झील सतोपंथ से 4350 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। त्रिकोणीय झील का नाम (त्रिकोणीय) भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, तथा भगवान शिव के नाम पर रखा गया है।
अलकनंदा की सहायक नदियां-
अलकनंदा की पांच सहायक नदियां है। जो गढ़वाल में 5 अलग-अलग स्थानों से मिलकर पंचप्रयाग बनाती है।
(केशवप्रयाग) –
यह स्थान अलकनंदा तथा सरस्वती का संगम स्थल है। सरस्वती नदी देवरिया ताल से निकलती है।
माना जाता है। कि सरस्वती नदी में माणा नामक गांव में एक भीम पुल नाम का एक बड़ा पत्थर है कहा जाता है कि जब पाण्डव स्वर्ग की ओर जा रहे थे तब सरस्वती नदी को पार करने के लिए भीम ने बड़ा सा पत्थर रखकर पुल का निर्माण किया था। इस पुल से पार होकर पाण्डव स्वर्ग की ओर बड़े थे। तब से इस पुल को भीम पुल के नाम से जाना जाता है।
(बद्रीनाथ चमोली जिला ) –
बद्रीनाथ चार धामों में से एक है जो चमोली जिले में स्थित है। यहाँ पर अलकनंदा ऋषिगंगा से मिलती है।ऋषिगंगा का उद्गमस्थल बद्रीनाथ के समीप नीलकंठ पर्वत में है।जो कि शिव धाम और ट्रेकिंग के लिए प्रसिद्ध है।
अलकनंदा नदी में छोटे बड़े नदियां मिलती रहती है। उनमें से एक प्रसिद्ध नदी है हनुमानचट्टी यहा पर हनुमान जी का मंदिर है|
ऐसा कहा जाता है। कि जब पाण्डव अपनी यात्रा के दौरान यहां से गुजर रहे थे तो भीम को एक बूड़ा बन्दर दिखा जो की सोया हुआ था। उसकी पूछ रास्ते में पड़ी थी जब भीम ने बन्दर को पूछ हटाने को कहा तो वह बूड़ा होने के कारण पूछ हटा नहीं पा रहा था। इस प्रकार भीम ने जा कर पूछ हटाने की कोशिश की तो वह उनसे हटायी नहीं जा रही थी तब जा कर भीम समझ गये यह कोई साधारण बन्दर नहीं है। हनुमान जी है और फिर तब से वहा पर हनुमान जी का मंदिर बना हैं।
गोविन्द घाट –
यहाँ पर अलकनंदा लक्ष्मणगंगा से मिलती हैं लक्ष्मणगंगा का उदगमस्थल हेमकुण्ड के पास है।
पंचप्रयाग
विष्णुप्रयाग(चमोली जिला) –
यहाँ पर पश्चिमी धौलीगंगा अलकनंदा से मिलती है। पश्चिमी धौलीगंगा का उद्गमस्थल धौलागिरी श्रेणी का कुनलूग छेत्र है।पश्चिमी धोलीगंगा की सहायक नदी ऋषिगंगा है। यह नंदादेवी पर्वत श्रेणी से निकलते हुए पश्चिमी धौलीगंगा के रेनी नामक जगह पर मिल जाती है। विष्णुप्रयाग और धौलीगंगा की कुल लम्बई 94 किलोमीटर है।
नंदप्रयाग(चमोली जिला)-
यहाँ पर नंदाकिनी अलकनंदा से मिलती है नंदाकिनी नदी का उदगमस्थल त्रिशूल पर्वत के पास स्थित नंदाघूंटी नामक स्थान में है। नंदप्रयाग की मान्यता है कि यह यदोवन सामराज्य की राजधानी हुआ करती थी और यहा के राजा नंद ने नदी के संगम पर एक बड़े से पत्थर में यज्ञ कराया था जो अब वहा की नीव बन गयी है।
कर्णप्रयाग (चमोली जिला)-
यहाँ पर अलकनंदा नदी मिलती है पिडर नदी से जो की बागेश्वर जिले में स्थित पिण्डारी ग्लेश्यर के नाम से जानी जाती है पिंडर नदी को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे पिंडरगंगा, कर्णगंगा इसकी सहायक नदी है दूधातोली की उत्तरी ढाल से निकलने वाली आटागाड़ नदी। पिण्डारी नदी की खास बात यह है कि ये काफी तेज आवाज करते हुए बहती है
कर्णप्रयाग की मान्यता है कि महाभारत में महादानी कर्ण ने अपने पिता सूर्य देव की यहा पर आराधना की थी और यही पर क्रूक्षेत्र का युद्ध खत्म होने के बाद श्री कृष्ण ने कर्ण का दाह संस्कार भी किया था। कर्णप्रयाग से पिंडर नदी की कुल लंबाई 105 किलोमीटर है।
रूद्रप्रयाग( रूद्रप्रयाग जिला)-
यहाँ पर मंदाकिनी अलकनंदा से मिलती है। यह अलकनंदा की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यह केदारनाथ के पास मंदरांचल श्रेणी से निकलती है। मंदाकिनी की सहायक नदी बासुकी गंगा और सोनगंगा है।
रूद्रप्रयाग की मान्यता है। कि इस नदी पर देव ऋषि नारद ने भगवान रूद्र की अराधना की थी। उन्होंने विष्णुप्रयाग में भगवान विष्णु तथा रूद्रप्रयाग में भागवान रूद्र की आराधना की थी। यह भी कहा जाता है कि उन्हें इसी अराधना से संगीत शात्र का ज्ञान प्राप्त हुआ था। रूद्रप्रयाग तक मंदाकिनी की कुल लम्बाई 72 किलोमीटर है।
देवप्रयाग ( टिहरी गढ़वाल)-
यहाँ पर भागीरथी नदी अलकनंदा से मिलती है। देवप्रयाग तक अलकनंदा नदी की कुल लंबाई 195 किलोमीटर है। इस संगम में ये दोनों नदी मिल के भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा का निर्माण करती है। गंगा नदी को 4 नवम्बर 2008 को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया और 2009 में स्पर्श गंगा अभियान तथा 2014 में नमामि गंगे अभियान शुरू किया गया।गंगा नदी की कुल लम्बाई 2525 किलोमीटर है|
देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी को सास बहु के नाम से जाना जाता है। देवप्रयाग की मान्यता लोक कथाओं के अनुसार, देवप्रयाग को देवशर्मा नामक एक तपस्वी ने बसाया था। यह भी कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने रावण का बध करने के बाद इसी संगम में दोष निवारण तपस्या की थी। देवप्रयाग को सुदर्शन क्षेत्र तथा इंद्रप्रयाग के नाम से भी जाना जाता है देवप्रयाग समुद्रसतह से 830 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। देवप्रयाग तीन पर्वतों से घिरा हुआ है। 1अर्थन्चल 2 गर्थ 3 नरसिंह।