नैना देवी मंदिर का इतिहास एवम् पौराणिक कथा ! (History and Mythology of Naina Devi Temple, Nainital)
नमस्कार दोस्तों आज हम आपको इस पोस्ट में उत्तराखंड राज्य में स्थित पर्यटन स्थल नैनीताल जिले में स्थित मुख्य मंदिर “नैना देवी मंदिर का इतिहास एवम् पौराणिक कथा” के बारे में विस्तारपूर्वक अवगत कराने वाले है इसलिए इस पोस्ट को अंत तक जरुर पढ़े |
नैना देवी मंदिर के बारे में जानकारी देने से पहले हम आपको नैनीताल में स्थित 10 आकर्षण स्थल के जानकारी देना चाहते है , यदि आप जानना चाहते है तो निचे दिए गए लिंक में क्लिक कर पोस्ट को जरुर पढ़े | (नैना देवी मंदिर का इतिहास एवम् पौराणिक कथा)
नैना देवी मंदिर का इतिहास (History of Naina Devi temple)
उत्तराखंड राज्य में नैनीताल जिले में महान ज्ञानी शक्ति धर्मो की पीठ , “नैनी देवी मंदिर” , पवित्र भक्ति का पवित्र स्थान है | नैनीताल मे नैनी झील के किनारे मल्लीताल के पास मां नैना देवी मंदिर का भव्य मंदिर स्थित है | नैना देवी मंदिर की प्रसिद्धता मुख्य शक्ति पीठों के रूप में भी होती है। कुशन काल में नैना देवी मंदिर का उल्लेख मिलता है । 15 वीं विज्ञापन में निर्मित , नैना देवी मंदिर की मूर्ति 1842 में एक भक्त मोती राम शाह द्वारा स्थापित की गई थी | सन 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था ।
बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। नैना देवी मंदिर में “नैना देवी” की भक्ति करी जाती है और यह मंदिर नैनी झील के उत्तरी सीरी छोर में स्थित है | इस मंदिर की ख़ास बात यह है कि इस मंदिर की देवी अपने पूर्णश्रेय में मंदिर में विराजमान नहीं है , बल्कि मंदिर में देवी के दो नयन अर्थात (आँखें) ही विराजमान है | देवी के भक्त दूर दूर से देवी नैना का आशीर्वाद लेने के लिए आते रहते है |मंदिर के प्रांगण में विभिन्न प्रकार के फुल लगे है जो कि मंदिर की सुन्दरता में चार-चाँद लगा देते है | मंदिर में नंदाअष्टमी के दिन भव्य मेले का आयोजन होता है | यह उत्सव 8 दिन तक आयोजित रहता है | इस मेले में उस दिन नंदा देवी की बहन नैनी देवी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है |
नैना देवी मंदिर में माँ के नयनो की पिंडी रूप में पूजा की जाती है | इस मंदिर से नैनी झील और नैनीताल के प्राकतिक दृश्यों का आनंद या लुफ्त उठाया जा सकता है | मंदिर के प्रांगण में विभिन्न प्रकार के फुल लगे है जो कि मंदिर की सुन्दरता में चार-चाँद लगा देते है | मंदिर में नंदाअष्टमी के दिन भव्य मेले का आयोजन होता है | इस मेले में उस दिन नंदा देवी की बहन , नैनी देवी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है | नैना देवी मंदिर में माँ के नयनो की पिंडी रूप में पूजा की जाती है | नैनीताल बस स्टैंड से इस मंदिर की दुरी सिर्फ 2.5 km है और रिक्शे से मंदिर में सिर्फ 9 मिनट में पंहुचा जा सकता है | इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं देना होता है और मंदिर के खुलने का समय सुबह 6:00 बजे से रात्री 10:00 बजे तक का है |(नैना देवी मंदिर का इतिहास एवम् पौराणिक कथा)
नैना देवी मंदिर की पौराणिक कथा (Mythology of Naina Devi Temple)
हिंदू ग्रंथ भी नैना देवी मंदिर के ऐतिहासिक महत्व के बारे में जानकारी प्रदान करता है। पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री “उमा” का विवाह भगवान शिव से हुआ था | शिव को दक्ष प्रजापति बिलकुल भी पसंद नहीं करते थे , किन्तु दक्ष प्रजापति देवताओ के अनुरोध को मना नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह ना चाहते हुए भी भगवान शिव के साथ कर देते है | एक बार दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ करवाया जिसमे कि उन्होंने सभी देवताओ को निमंत्रण दिया परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमंत्रण नहीं दिया | मगर देवी उमा हठ कर यज्ञ में पहुच जाती है | जब देवी उमा ने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओ का सम्मान और अपने पति और अपना अपमान होते हुए देखती है तो देवी उमा अत्यंत दुखी हो जाती है और यज्ञ के हवनकुंड में यह कहते हुई कूद पड़ती है कि ” मैं अगले जन्म मे सिर्फ शिव को ही अपना स्वामी (पति) बनाउंगी , आपने मेरे पति और मेरा जो अपमान किया है उसके फलस्वरूप यज्ञ के हवनकुंड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हु” |
जब भगवान शिव को पता चलता है कि देवी उमा सती(मृत्यु प्राप्त) हो गई है तो उनके क्रोध की सीमा नहीं रहती है | भगवान शिव अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट-भ्रष्ट कर देते है | सभी देवी-देवता भगवान शिव के रोद्र-रूप को देखकर सोच में पड जाते है कि कही शिव प्रलय ना कर डाले , इसलिए देवी- देवता भगवान शिव से प्रार्थना करके उनके क्रोध को शांत कर देते है | दक्ष प्रजापति भी भगवान शिव से माफ़ी मांगते है , लेकिन देवी उमा यानी सती के जले हुए शरीर को देखकर भगवान शिव का वैराग्य उमड़ पड़ता है और भगवान शिव सती के जले हुए शरीर को कंधे पर रखकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर देते है | ऐसी स्थिति में जिस जिस स्थान में देवी उमा या सती के शरीर के अंग गिरे , उस स्थान पर शक्ति पीठ हो गए | जिस स्थान पर सती के नयन गिरे , वही पर नैना देवी के रूप में देवी उमा अर्थात नंदा देवी का भव्य स्थान हो गया | आज नैनीताल वही स्थान है , जहाँ पर देवी उमा के नेत्र (आँखें) गिरे थे | सती के शरीर के 51 टुकड़े जहां-जहां गिरे वहां-वहां एक-एक शक्तिपीठ स्थापित हुआ । मान्यता है कि देवी की अश्रुधार (आँखों (नयनो) की आंसू की बूंदों) से इस स्थान पर एक ताल का निर्माण हुआ है , तब से निरंतर शिवपत्नी नंदा(पार्वती) की पूजा “नैना देवी” के रूप में होती है |(नैना देवी मंदिर का इतिहास एवम् पौराणिक कथा)
नैना देवी मंदिर के अन्दर (Inside Naina Devi Temple)
मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करने के बाद मंदिर के अन्दर एक विशाल पीपल का पेड है , जो की नैना देवी मंदिर में आये भक्तो के लिए आराम करने हुते लगा है | पीपल के पेड के पार भगवान हनुमान की एक मूर्ति है | मंदिर के पवित्र स्थान के अन्दर तीन देवताओ के आकार की मुर्तिया है , बीच में दो नेत्र (आँखें) है जो कि नैना देवी का प्रतिनिधित्व करते है और बायीं तरफ “माता काली देवी” और दाई ओर ” भगवान गणेश” की मूर्ति है | माँ नैना देवी का मुख्य मंदिर दो शेरों की मूर्तियों से घिरा है | (नैना देवी मंदिर का इतिहास एवम् पौराणिक कथा)
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उम्मीद करते है कि आपको “नैना देवी मंदिर का इतिहास एवम् पौराणिक कथा” के बारे में पढ़कर आनंद आया होगा |
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360 degree image of Naina Devi Temple
View of Inside Naina Devi Mandir
View of outside Naina Devi Temple