नंदा देवी मंदिर का इतिहास , पौराणिक कथा एवम् मान्यताऐ | History , mythology and Beliefs of Maa Nanda Devi temple (Almora)
नमस्कार दोस्तों आज हम आपको उत्तराखंड दर्शन के इस पोस्ट में अल्मोड़ा स्थित प्रसिद्ध “नंदा देवी मंदिर का इतिहास , पौराणिक कथा एवम् मान्यताऐ” के बारे में जानकारी देने वाले है इसलिए इस पोस्ट को अंत तक जरुर पढ़े |
नंदा देवी मंदिर के बारे में जानकारी देने से पहले हम आपको अल्मोड़ा में स्थित कुछ अन्य मंदिर के बारे में भी जानकारी देना चाहते है | यदि आप उन मंदिरों के बारे में जानकारी पाना चाहते है तो निचे दिए गए लिंक में क्लिक करे |
नंदा देवी मंदिर का इतिहास (History of Nanda Devi Temple)
नंदा देवी मंदिर की स्थापना का पौराणिक इतिहास ! (Legendary history of establishment of Nanda Devi temple)
नंदा देवी मंदिर के पीछे कई ऐतिहासिक कथा जुडी है और इस स्थान में नंदा देवी को प्रतिष्ठित (मशहूर) करने का सारा श्रेय चंद शासको का है | कुमाऊं में माँ नंदा की पूजा का क्रम चंद शासको के जामने से माना जाता है | किवंदती व इतिहास के अनुसार सन 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणकोट किले से माँ नंदा देवी की सोने की मूर्ति लाये और उस मूर्ति को मल्ला महल (वर्तमान का कलेक्टर परिसर, अल्मोड़ा) में स्थापित कर दिया , तब से चंद शासको ने माँ नंदा को कुल देवी के रूप में पूजना शुरू कर दिया |
इसके बाद बधाणकोट विजय करने के बाद राजा जगत चंद को जब नंदादेवी की मूर्ति नहीं मिली तो उन्होंने खजाने में से अशर्फियों को गलाकर माँ नंदा की मुर्ति बनाई | मूर्ति बनने के बाद राजा जगत चंद ने मूर्ति को मल्ला महल स्थित नंदादेवी मंदिर में स्थापित करा दिया | सन 1690 में तत्कालीन राजा उघोत चंद ने पार्वतीश्वर और उघोत चंद्रेश्वर नामक “दो शिव मंदिर” मौजूदा नंदादेवी मंदिर में बनाए | वर्तमान में यह मंदिर चंद्रेश्वर व पार्वतीश्वर के नाम से प्रचलित है | सन 1815 को मल्ला महल में स्थापित नंदादेवी की मूर्तियों को कमिश्नर ट्रेल ने उघोत चंद्रेश्वर मंदिर में रखवा दिया |( नंदा देवी मंदिर का इतिहास , पौराणिक कथा एवम् मान्यताऐ )
नंदा देवी मंदिर की मान्यता (Beliefs of Nanda Devi Temple)
प्रचलित मान्यताओ के अनुसार एक दिन कमिश्नर ट्रेल नंदादेवी पर्वत की चोटी की ओर जा रहे थे , तो अचानक रास्ते में बड़े ही रहस्यमय ढंग से उनकी आँखों की रोशनी चली गयी | लोगो की राय(सलाह) पर उन्होंने अल्मोड़ा में नंदादेवी का मंदिर बनवाकर उस स्थान में नंदादेवी की मूर्ति स्थापित करवाई , तो रहस्यमय तरीके से उनकी आँखो की रोशनी लौट आई | इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि राजा बाज बहादुर प्रतापी थे | जब उनके पूर्वज को गढ़वाल पर आक्रमण के दौरान सफलता नहीं मिली , तो राजा बाज बहादुर ने प्रण किया कि उन्हें युद्ध में यदि विजय मिली , तो वो नंदादेवी को अपनी ईष्ट देवी के रूप में पूजा करेंगे | कुछ समय के बाद गढ़वाल में आक्रमण के दौरान उन्हें विजय प्राप्त हो गयी , और तब से नंदा देवी को ईष्ट देवी के रूप में भी पूजा जाता है |
मानसखण्ड में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि मां नंदा के दर्शन मात्र से ही मनुष्य ऐश्वर्य को प्राप्त करता है तथा सुख-शांति का अनुभव करता है | ( नंदा देवी मंदिर का इतिहास , पौराणिक कथा एवम् मान्यताऐ )
उम्मीद करते है कि आपको “नंदा देवी मंदिर का इतिहास , पौराणिक कथा एवम्
मान्यताये” के बारे में पढ़कर आनंद आया होगा |
और उत्तराखंड के विभिन्न स्थल एवम् स्थान का इतिहास एवम् संस्कृति आदि के बारे में जानकारी प्राप्त के लिए हमारा YOU TUBE CHANNEL जरुर SUBSCRIBE करे |