History of Bageshwer (बागेश्वर का इतिहास)
नमस्कार दोस्तों आज हम आपको उत्तराखंड दर्शन की इस पोस्ट में उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिला अर्थात “बागेश्वर के इतिहास (History of Bageshwer)” के बारे में जानकारी देने वाले है | यदि आप उत्तराखंड राज्य में स्थित बागेश्वर के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो इस पोस्ट को अंत तक पढ़े !
History of Bageshwer (बागेश्वर का इतिहास)
बागेश्वर जिला , उत्तराखंड के कुमाऊं मण्डल का एक जिला है | जिसका निर्माण 1997 में हुआ था | इससे पहले यह जिला अल्मोड़ा जिला का भाग था | बागेश्वर जिले में 3 तहसीलें है और 1 विधान सभा सीट है एवम् बागेश्वर जिले का मुख्यालय बागेश्वर नगर में ही है। बागेश्वर जिले के पडोसी जिले कुछ इस प्रकार से है, पूर्व में पिथौरागढ़ जिला है, दक्षिण से पश्चिम तक अल्मोड़ा और पश्चिम से उत्तर तक चमोली जिला है।
बागेश्वर जिले का इतिहास बड़ा ही रोचक है | सर्वप्रथम बागेश्वर , अल्मोड़ा जिले का तहसील था लेकिन 15 सितम्बर 1990 को यह अल्मोड़ा से अलग हो गया और एक स्वतंत्र जिला बन गया | हिन्दू पौराणिक कथाओ के अनुसार इस स्थान पर साधू और अन्य देवी देवता भगवान शिव के लिए ध्यान लगाने के लिए आया करते थे | भगवान शिव इस स्थान में शेर का रूप धारण कर विराजे थे इसलिए इस स्थान का नाम “व्याघ्रेश्वर तथा बागेश्वर” बन गया | बाद में 1450 ईसवी में चंद राजवंश के राजा लक्ष्मी चंद ने बागेश्वर में एक मंदिर स्थापित किया | बागेश्वर को प्राचीन काल से भगवान शिव और माता पार्वती की पवित्र भूमि माना जाता है एवम् पडोसी क्षेत्रो में भी बागेश्वर की भूमि विश्वास का प्रतीक है | पुराणों के अनुसार बागेश्वर “देवो का देवता” है |
बागेश्वर में स्थित प्रसिद्ध प्राचीन बागनाथ मंदिर के बाद नगर का नाम बागेश्वर रखा गया | उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर को भगवान शिव के कारण “तीर्थराज” भी कहा जाता है | बागेश्वर असल में शिव की लीला स्थली है | भगवान शिव के गण चंदिस ने इसकी स्थापना की | इस स्थान में शिव और पार्वती निवास करते थे | बागेश्वर के सम्बन्ध में स्कन्दपुराण में उल्लेख है | स्कन्द पुराण की कथा यह है कि एक बार मार्कंडेय ऋषि नीलपर्वत पर मौजूद ब्रह्मकपाली शिला पर तपस्या कर रहे थे | ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जब देवलोक से विष्णु की मान्सपुत्री सरयू को लेकर आये तो तपस्या में लींन मार्कंडेय ऋषि के कारण सरयू को आगे बढ़ने के लिए रास्ता नहीं मिला | तब ब्रह्मर्षि वशिष्ठ ने शिवजी से संकट दूर करने का निवेदन किया | शिवजी ने तब बाघ का रूप धारण किया और माता पार्वती ने गाय का | गाय जब घास खा रही थी तो बाघ ने जोर से गर्जना की और डर के मारे गाय जोर जोर से रंभाने लगी | जिस कारण मार्कंडेय की समाधी भंग हो गयी और जैसे ही मार्कंडेय गाय को बचाने के लिए दौड़े तो सरयू नदी आगे बढ़ गयी | इस तरह बागेश्वर की सरयू नदी को रास्ता मिल गया |
सरयू नदी के बारे में यह मान्यता है कि सरयू नदी का स्नान मोक्ष प्रदान करता है एवम् सरयू का सतोगुणी जल पीने से सोमपान का फल मिलता है तो स्नान से अश्वमेघ का फल | इस तीर्थ में जिनकी मृत्यु होती है , वे शिव को ही प्राप्त होते है | बागेश्वर सूर्य तीर्थ तथा अग्नि तीर्थ के बीच स्थित है | मकर सक्रांति के अवसर पर बागेश्वर में हर वर्ष उत्तरायणी का प्रसिद्ध मेला लगता है |
बागेश्वर जिले के इतिहास के बारे में जानने से पहले यदि आप बागेश्वर जिले में स्थित प्रसिद्ध मंदिर एवम् पर्यटन स्थलों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए निचे दिए गए लिंक में क्लिक करे |
उम्मीद करते है कि आपको “ बागेश्वर के इतिहास (History of Bageshwer) ” के बारे में पढ़कर आनंद आया होगा |
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