गंगोत्री धाम का इतिहास (History of Gangotri Dham) !!

नमस्कार दोस्तों आज हम आपको उत्तराखंड दर्शन की इस पोस्ट में उत्तराखंड राज्य में स्थित प्रसिद्ध चार धामों में से एक धाम गंगोत्री धाम अर्थात गंगोत्री धाम के इतिहास  के बारे में जानकारी देने वाले है , यदि आप गंगोत्री धाम के इतिहास के बारे में जानना चाहते है तो इस पोस्ट को अंत तक पढ़े !

गंगोत्री धाम का इतिहास ! (History of Gangotri Dham)

“गंगोत्री मंदिर” भारत के राज्य उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले से 100 km की दुरी पर स्थित है | पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार धरती पर मां गंगा का जिस स्‍थान पर अवतरण हुई , उसे “गंगोत्री तीर्थ” के नाम से जाना जाता है | गंगोत्री उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगा नदी के उद्गम के रूप में माना जाता है | ( गंगोत्री धाम का इतिहास )

यह चार धाम यात्रा का दूसरा पवित्र पड़ाव है , जो कि यमुनोत्री धाम के बाद आता है |

गंगोत्री मंदिर हिन्दुओ का एक पवित्र व तीर्थ स्थान है | गंगोत्री मंदिर भागीरथी नदी के तट पर स्थित है |

यह मंदिर 3100 मीटर (10,200 फीट) की ऊँचाई पर ग्रेटर हिमालय रेंज पर स्थित है | यह स्थान गंगा नदी का उद्गम स्थल है | गंगोत्री मंदिर भारत का सबसे प्रमुख मंदिर है |

गंगोत्री में गंगा का उद्गम स्रोत यहाँ से लगभग 24 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर में 4,225 मीटर की ऊँचाई पर होने का अनुमान है |

गंगा का मन्दिर तथा सूर्य, विष्णु और ब्रह्मकुण्ड आदि पवित्र स्थल यहीं पर हैं |

पौराणिक कथा के अनुसार :-

भगवान श्री राम चन्द्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी।गंगोत्री धाम के इतिहास  के अनुसार “देवी गंगा” ने इसी स्थान पर धरती का स्पर्श किया।

अन्य मान्यता यह है कि पांडवों ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गए अपने परिजनों की आत्मिक शांति के निमित इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ करवाया था। ( गंगोत्री धाम का इतिहास ! )

गंगोत्री से 19 किलोमीटर दूर, समुद्रतल से तकरीबन 3,892 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है “गौमुख” । यह गंगोत्री ग्लेशियर का मुहाना तथा भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है । कहते हैं कि यहां के बर्फिले पानी में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं।

चार धाम यात्रा के अन्य तीन धाम का इतिहास जानने के लिए निचे दिए गए link में क्लिक करे :-

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पवित्र शिलाखंड के पास ही 18वीं शताब्दी में गंगोत्री मंदिर का निर्माण  किया गया।

गंगोत्री धाम के इतिहास  के साथ-साथ गंगोत्री धाम की मान्यतायो  को भी जरुर पढ़े|

इस जगह पर शंकराचार्य ने गंगा देवी की एक मूर्ति स्थापित की थी। जहां इस मूर्ति की स्थापना हुई थी | वहां गंगोत्री मंदिर का निर्माण  गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18वी शताब्दी में किया गया था | मंदिर में प्रबंध के लिए सेनापति थापा ने मुखबा गंगोत्री गांवों से पंडों को भी नियुक्त किया । इसके पहले टकनौर के राजपूत ही गंगोत्री के पुजारी थे।

गंगोत्री धाम का इतिहास  यह भी है कि जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने 20वीं सदी में मंदिर की मरम्मत करवायी। और वर्तमान समय में गंगोत्री मन्दिर का पुनःनिर्माण  जयपुर राजघराने के राजा माधो सिंह ने बींसवी शताब्दी में करवाया था |

गंगोत्री मंदिर उत्कर्ष्ठ सफ़ेद ग्रेनाइट के चमकदार 20 फीट उन्शे पठारों से निर्मित है |शिवलिंग के रूप में एक नैसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न है। यह दृश्य अत्यधिक मनोहार एवं आकर्षक है | यहां शिवलिंग के रूप में एक नैसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न रहती है।

नैसर्गिक चट्टान के दर्शन से दैवीय शक्ति की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है | गंगोत्री मंदिर के समीप शाम होते ही जब गंगा नदी का स्तर कम हो जाता है | उस समय पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते है जो की गंगोत्री नदी में जलमग्न है |

गंगोत्री मंदिर की पौराणिक कथा  के अनुसार भगवान शिवजी इस जगह में अपनी जताओ को फैला कर बैठ गए और उन्होंने गंगा माता को अपनी घुंघराली जताओ में लपेट दिया | ( गंगोत्री धाम का इतिहास ! )

प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीने के बीच पवित्र पावनी गंगा मैया के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु इस चार धाम में से गंगोत्री के दर्शन करने के लिए आते है |



उम्मीद करते है कि आपको “गंगोत्री धाम के इतिहास” के बारे में पढ़कर आनंद आया होगा |

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