यमुनोत्री धाम का इतिहास (History of Yamunotri Dham) !!
नमस्कार दोस्तों आज हम आपको उत्तराखंड दर्शन की इस पोस्ट में उत्तराखंड राज्य में स्थित प्रसिद्ध धाम “यमुनोत्री धाम अर्थात यमुनोत्री धाम का इतिहास “ के बारे में जानकारी देने वाले है , यदि आप यमुनोत्री धाम के इतिहास के बारे में जानना चाहते है तो इस पोस्ट को अंत तक जरुर पढ़े !
यमुनोत्री धाम का इतिहास ! (History of Yamunotri Dham)
हिमालय की पर्वत श्रंख्लायो में बसा ” यमुनोत्री धाम ” हिन्दुओ के चार धामों में से एक है | (यमुनोत्री धाम का इतिहास)
यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल हिमालय के पश्चिम में समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है | यह मंदिर चार धाम यात्रा का पहला धाम अर्थात यात्रा की शुरूआत इस स्थान से होती है तथा यह चार धाम यात्रा का यह पहला पड़ाव है । यमुनोत्री धाम का इतिहास यानी मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने सन 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए बनवाया था |
यमुनोत्री मंदिर भुकम्प से एक बार पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है |
और इस मंदिर का पुनः निर्माण जयपुर की “महारानी गुलेरिया” के द्वारा 19वीं सदी में करवाया गया था।
यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुयी बर्फ की एक झील और हिमनंद (चंपासर ग्लेशियर) है |
जो समुन्द्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है |
मंदिर के मुख्य कर्व गृह में माँ यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति विराजत है |इस मंदिर में यमुनोत्री जी की पूजा पुरे विधि विधान के साथ की जाती है | यमुनोत्री धाम में पिंड दान का विशेष महत्व है | श्रद्धालु इस मंदिर के परिसर में अपने पितरो का पिंड दान करते है | (यमुनोत्री धाम का इतिहास )
यमुनोत्री धाम के इतिहास के साथ यमुनोत्री धाम की मान्यताओ के बारे में भी जरुर जाने |
पौराणिक गाथाओ के अनुसार :-
यमुना नदी सूर्य देव की पुत्री है और मृत्यु के देवता यम की बहन है | कहते है कि भैयादूज के दिन जो भी व्यक्ति यमुना में स्नान करता है |उसे यमत्रास से मुक्ति मिल जाती है | इस मंदिर में यम की पूजा का भी विधान है |
यमुनोत्री धाम के इतिहास का वर्णन हिन्दुओं के वेद-पुराणों में भी किया गया है , जैसे :- कूर्मपुराण, केदारखण्ड, ऋग्वेद, ब्रह्मांड पुराण मे , तभी यमुनोत्री को ‘‘यमुना प्रभव’’ तीर्थ कहा गया है।
और यह भी कहा जाता है कि इस स्थान पर “संत असित” का आश्रम था |
महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा मे आए | तो वे पहले यमुनोत्री , तब गंगोत्री फिर केदारनाथ-बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा की जाती है।
और चारधाम यात्रा के बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास और मान्यताये ! के बारे में जरुर जाने |
प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच पतित पावनी यमुना देवी के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु व तीर्थयात्री इस स्थान में आते है।
उम्मीद करते है कि आपको “यमुनोत्री धाम का इतिहास ” के बारे में पढ़कर आनंद आया होगा |
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