बसंत पंचमी का इतिहास , महत्व और क्यों मनाया जाता है ?

नमस्कार दोस्तों आज हम आपको उत्तराखंड दर्शन की इस पोस्ट में देवभूमि उत्तराखंड में मनाये जाने वाला त्यौहार “बसंत पंचमी” के बारे में जानकारी देने वाले है अर्थात  ( बसंत पंचमी का इतिहास , महत्व और क्यों मनाया जाता है ) , यदि आप बसंत पंचमी त्यौहार के बारे में जानना चाहते है तो इस पोस्ट को अंत तक जरुर पढ़े |

बसंत पंचमी का इतिहास !! (History of Basant Panchami !!)




History of Basant Panchami बसंत पंचमी हिन्दुओ का प्रमुख त्यौहार है और बसंत पचमी को श्री पंचमी और ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है । यह त्यौहार माघ के महीने में शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाता है | पुरे वर्ष को 6 ऋतूओ में बाँटा जाता है , जिसमे वसंत ऋतू , ग्रीष्म ऋतू ,वर्षा ऋतू , शरद ऋतू , हेमंत ऋतू और शिशिर ऋतू शामिल है | इस सभी ऋतूओ में से वसंत को सभी ऋतूओ का राजा माना जाता है , इसी कारण इस दिन को बसंत पंचमी कहा जाता है तथा इसी दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है | इस ऋतु में खेतों में फसले लहलहा उठती है और फूल खिलने लगते है एवम् हर जगह खुशहाली नजर आती है तथा धरती पर सोना उगता है अर्थात धरती पर फसल लहलहाती है । मान्यता है कि इस दिन माता सरस्वती का जन्म हुआ था इसलिए बसंत पचमी के दिन सरस्वती माता की विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है । माँ सरस्वती को विद्या एवम् बुद्धि की देवी माना जाता है | बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती से विद्या, बुद्धि, कला एवं ज्ञान का वरदान मांगा जाता है । इस दिन लोगों को पीले रंग के कपडे पहन कर पीले फूलो से देवी सरस्वती की पूजा करनी चाहिए एवम् लोग पतंग उड़ाते और खाद्य सामग्री में मीठे पीले रंग के चावाल का सेवन करते है | पीले रंग को बसंत का प्रतीक माना जाता है |

बसंत पंचमी का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है | इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करने के पीछे एक पौराणिक कथा है | सर्वप्रथम श्री कृष्ण और ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती की पूजा की थी | देवी सरस्वती ने जब श्री कृष्ण को देखा तो वो उनके रूप को देखकर मोहित हो गयी और पति के रूप में पाने के लिए इच्छा करने लगी | इस बात का भगवान श्री कृष्ण को पता लगने पर उन्होंने देवी सरस्वती से कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित है परन्तु सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान श्री कृष्ण देवी सरस्वती को वरदान देते है कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखने वाले को माघ महीने की शुल्क पंचमी को तुम्हारा पूजन करेंगे | यह वरदान देने के बाद सर्वप्रथम ही भगवान श्री कृष्ण ने देवी की पूजा की |

बसंत पंचमी का इतिहास (History of Basant Panchami)

शास्त्रों एवं पुराणों कथाओं के अनुसार बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा को लेकर एक बहुत ही रोचक कथा है, कथा कुछ इस प्रकार है।

बसंत पंचमी के ऐतिहासिक महत्व को लेकर यह मान्यता है कि सृष्टि रचियता भगवान ब्रह्मा ने जीवो और मनुष्यों की रचना की थी तथा ब्रह्मा जी जब सृष्टि की रचना करके उस संसार में देखते हैं तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई देता है एवम् वातावरण बिलकुल शांत लगता है जैसे किसी की वाणी ना हो | यह सब करने के बाद भी ब्रह्मा जी मायूस , उदास और संतुष्ट नहीं थे | तब ब्रह्मा जी भगवान् विष्णु जी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल पृथ्वी पर छिडकते है | कमंडल से धरती पर गिरने वाले जल से पृथ्वी पर कंपन होने लगता है और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी(चार भुजाओं वाली) सुंदर स्त्री प्रकट होती है । उस देवी के एक हाथ में वीणा और दुसरे हाथ में वर मुद्रा होती है बाकी अन्य हाथ में पुस्तक और माला थी | ब्रह्मा जी उस स्त्री से वीणा बजाने का अनुरोध करते है | देवी के वीणा बजाने से संसार के सभी जीव-जंतुओ को वाणी प्राप्त को जाती है | उस पल के बाद से देवी को “सरस्वती” कहा गया | उस देवी ने वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि भी दी इसलिए बसंत पंचमी के दिन घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है | अर्थात दुसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम “सरस्वती पूजा” भी है | देवी सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है ।

उत्तराखंड में बसंत पंचमी के अल्वा अन्य त्यौहार घी त्यौहार , घुघुतिया त्यौहार  भी बड़ी धूमधाम के साथ मनाये जाते है | यदि आप उन त्यौहार के बारे में जानना चाहते है , तो त्यौहार के नाम पर क्लिक कर पोस्ट को पढ़े |

बसंत पंचमी का महत्व !! (Importance of Basant Panchami !!)

भारतीय पंचांग में छह ऋतूऐ होती है | बसंत ऋतू को ऋतुओ का राजा कहा जाता है | बसंत पंचमी फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है | ऋतुराज बसंत का बहुत अत्यधिक महत्व है | ठंड के बाद प्रकृति की छटा देखते ही बनती है | इस मौसम में खेतों में सरसों की फसल पीले फूलों के साथ , आम के पेड़ पर आए फूल , चारों तरफ हरियाली और गुलाबी ठण्ड मौसम को और भी खुशनुमा बना देती है , यदि सेहत की दृष्टि से देखा जाए तो यह मौसम बहुत अच्छा होता है | इंसानों के साथ-साथ पशु पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है , इस ऋतू को कामबाण के लिए भी अनुकूल माना जाता है , यदि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार देखा जाए तो इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था , यही कारण है कि यह त्यौहार हिंदुओं के लिए बहुत खास है | इस त्यौहार पर पवित्र नदियों में लोग स्नान आदि करते हैं , इसके साथ ही हाथी बसंत मेला आदि का भी आयोजन किया जाता है |

बसंत पंचमी के दिन को बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के आरंभ के लिए शुभ मानते हैं। इस दिन बच्चे की जीभ पर शहद से ॐ बनाना चाहिए। माना जाता है कि इससे बच्चा ज्ञानवान होता है व शिक्षा जल्दी ग्रहण करने लगता है । 6 माह पूरे कर चुके बच्चों को अन्न का पहला निवाला भी इसी दिन खिलाया जाता है । अन्नप्राशन के लिए यह दिन अत्यंत शुभ है । बसंत पंचमी को परिणय सूत्र में बंधने के लिए भी बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है इसके साथ-साथ गृह प्रवेश से लेकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस दिन को शुभ माना जाता है ।



उम्मीद करते है कि आपको “बसंत पंचमी पर्व ” के बारे में पढ़कर आनंद आया होगा |

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