जागेश्वर मंदिर की मान्यताऐ एवम् किवदंती ! ( Jageshwer Temple Beliefs and Fortune )
नमस्कार दोस्तों आज हम आपको उत्तराखंड दर्शन की इस पोस्ट में अल्मोड़ा स्थित “जागेश्वर मंदिर की मान्यताऐ एवम् किवदंती” के बारे में जानकारी बताने वाले है , यदि आप जागेश्वर मंदिर की मान्यताऐ एवम् किवदंती के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते है , तो पोस्ट को अंत तक पढ़े !
उत्तराखंड के प्रमुख देवस्थालो में “जागेश्वर धाम या मंदिर” एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है | यह उत्तराखंड का सबसे बड़ा मंदिर समूह है | यह कुमाउं मंडल के अल्मोड़ा जिले से 38 किलोमीटर की दुरी पर देवदार के जंगलो के बीच में स्थित है | जागेश्वर को उत्तराखंड का “पाँचवा धाम” भी कहा जाता है | जागेश्वर मंदिर में 125 मंदिरों का समूह है | जिसमे 4-5 मंदिर प्रमुख है जिनमे विधि के अनुसार पूजा होती है | जागेश्वर धाम मे सारे मंदिर समूह केदारनाथ शैली से निर्मित हैं | जागेश्वर अपनी वास्तुकला के लिए काफी विख्यात है। बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित ये विशाल मंदिर बहुत ही सुन्दर हैं। जागेश्वर मंदिर में लगभग 25 मंदिर अपनी भव्यता के साथ-साथ पुरातत्व कला की दृष्टि से भी प्रसिद्ध हैं |(जागेश्वर मंदिर की मान्यताऐ एवम् किवदंती)
प्राचीन मान्यता के अनुसार जागेश्वर धाम भगवान शिव की तपस्थली है | यहाँ नव दुर्गा ,सूर्य, हमुमान जी, कालिका, कालेश्वर प्रमुख हैं | हर वर्ष श्रावण मास में पूरे महीने जागेश्वर धाम में पर्व चलता है । पूरे देश से श्रद्धालु इस धाम के दर्शन के लिए आते है | इस स्थान में कर्मकांड, जप, पार्थिव पूजन आदि चलता है । मंदिर में विदेशी पर्यटक भी खूब आते हैं । जागेश्वर मंदिर में हिन्दुओं के सभी बड़े देवी-देवताओं के मंदिर हैं । दो मंदिर विशेष हैं पहला “शिव” और दूसरा शिव के “महामृत्युंजय रूप” का । महामृत्युंजय में जप आदि करने से मृत्यु तुल्य कष्ट भी टल जाता है । 8 वी ओर 10 वी शताब्दी मे निर्मित इस मंदिर समूहों का निर्माण कत्यूरी राजाओ ने करवाया था परन्तु लोग मानते हैं कि मंदिर को पांडवों ने बनवाया था , लेकिन इतिहासकार मानते हैं कि इन्हें कत्यूरी और चंद शासकों ने बनवाया था ।
इस स्थल के मुख्य मंदिरों में दन्देश्वर मंदिर, चंडी-का-मंदिर, कुबेर मंदिर, मिर्त्युजय मंदिर , नौ दुर्गा, नवा-गिरह मंदिर, एक पिरामिड मंदिर और सूर्य मंदिर शामिल हैं।
महामंडल मंदिर,महादेव मंदिर का सबसे बड़ा मंदिर है, जबकि दन्देश्वर मंदिर जागेश्वर का सबसे बड़ा मंदिर है। (जागेश्वर मंदिर की मान्यताऐ एवम् किवदंती)
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जागेश्वर धाम की किवदंती ! (Fortunes of Jageshwer Temple)
किवंदती के अनुसार भगवान शिव इसी स्थान में ध्यान करने आये थे | यह बात जानने के बाद सभी गाँव की महिलाये भगवान शिव जी की एक झलक पाने के लिए इकठठे हुए और जब गाँव के सारे पुरुष सदस्यों को यह बात पता चली , तो सारे पुरुष क्रोधित हो गए और सभी पुरुष उस तपस्वी को खोजने लगे जिसने महिलाओ को मोहित किया था | इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव ने एक बच्चे का रूप लिया और तब से इस स्थान में भगवान शिव की पूजा “बाल जागेश्वर” के रूप में की जाती है | मंदिर में अन्दर शिवलिंग दो भागो में उपस्थित है , जहाँ आधा बड़ा हिस्सा भगवान शिव का प्रतीक है , वही छोटा हिस्सा उनकी पत्नी पार्वती का प्रतिनिधित्व करता है | (जागेश्वर मंदिर की मान्यताऐ एवम् किवदंती)
जागेश्वर मंदिर की मान्यताऐ ! (Beliefs of Jageshwer Temple)
इस स्थान की यह मान्यता है कि जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने इसी स्थान का भ्रमण किया और इसकी मान्यता को पुनःस्थापित किया |
जागेश्वर मंदिर की यह मान्यता भी है कि कालसर्प के दोष से मुक्ति हेतु पूजा कराने के लिए जागेश्वर धाम एक मुख्य स्थान है | यहाँ कोई भी भक्तगण अपनी सुविधानुसार पूजा कराकर कालसर्प दोष से मुक्ति पा सकता है |
अन्य मान्यता यह है कि शिव का महामृत्युंजय रूप भारत में केवल “जागेश्वर” में ही उपस्थित है । जागेश्वर की हरी-भरी घाटी में नन्दनी और सुरभि नामक दो छोटी-छोटी नदियाँ हैं। जिसे बाद में “जटा गंगा” कहते हैं और यहाँ एक कुण्ड भी है , जिसमें श्रद्धालु स्नान करने के बाद मंदिर में पूजा करने जाते हैं । मंदिर के नीचे शमशान घाट है , जहाँ शवदाह करना बड़ा पवित्र माना जाता है । (जागेश्वर मंदिर की मान्यताऐ एवम् किवदंती)
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