इतिहास पीपल साहिब History Of “Peepal Sahib”

नमस्कार दोस्तों, आज हम आपको “उत्तराखंड दर्शन” के इस पोस्ट में नानकमत्ता में स्थित “पीपल साहिब का इतिहास History Of Peepal Sahib” के बारे में बताने वाले हैं यदि आप जानना चाहते “पीपल साहिब History Of Peepal Sahib” के बारे में तो इस पोस्ट को अंत तक जरुर पढ़े|





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इतिहास पीपल साहिब History Of Peepal Sahib

यह पीपल साहिब श्री गुरु नानक देव जी एवं श्री गुरु हरिगोविन्द साहिब जी की चरणछोह प्राप्त रहमतों का प्रतीक है| तीसरी उदासी के समय श्री गुरुनानक देव जी जब इस स्थान पर पहुंचे तो यह पीपल का वृक्ष सुखा हुआ था| श्री गुरुनानक देव जी की चरणछोह प्राप्त कर यह पीपल हरा भरा हो गया|

गुरु जी का यह अलौकिक किक चमत्कार देख के सिद्धों योगियों ने इश्यार्वश हो कर अपनी योग शक्ति से पीपल को हवा में उड़ा दिया|गुरु जी ने अपनी कृपा से उड़ते हुये पीपल को अपना पवित्र पंजा लगा के जमींन से 6-7 फुट ऊपर ही रोक दिया |

श्री गुरु नानक जी के चले जाने के बाद बाबा अलमस्त जी यहाँ की सेवा करने लगे| सिद्धों योगियों ने दुबारा यहाँ आके बाबा अलमस्त जी के साथ मार पीट कर के यहाँ खदेड़ दिया व अपनी योग शक्ति से पीपल को जला दिया उस समय श्री गुरु नानक देव जी की गद्दी पर श्री गुरु हरिगोविन्द साहिब विराजमान थे बाबा अलमस्त जी ने उनके चरणों में हाथ जोड़ के प्रार्थना की| गुरु जी ने अरदास परवान कर कुछ सिखों को अपने साथ लिया व श्री अमृतसर साहिब से यहाँ पहुंचे| गुरु जी का संत सिपाही रूप देख के सिद्ध डर कर भाग गये| गुरु जी ने में केसर नीला कर पीपल पर छीटे मारे| गुरु जी की कृपा से सुखा हुआ पीपल पुनह हरा भरा हो गया|






इस स्थान के साथ गुरु जी के चरण छोह प्राप्त अन्य स्थान गुरु द्वार दूध वाला कुंवा, गुरु द्वार छेवी पात शाही  गुरु द्वार श्री भंडारा साहिब, बावउली  साहिब हैं| गुरु जी ने सिद्धों योगियों के साथ ज्ञान गोश्ठी की व उनके बाहरी आडम्बर व दिखावे का खंडन किया| गुरु जी ने उन्हें संसार में रहते हुये संसार से निर्लेप रह कर वाहि गुरु को पाने का उपदेश दिया| इस स्थान से धरती से आवाज आई,नानकमत्ता, नानकमत्ता, नानकमत्ता| इस लिए इस स्थान का नाम नानक मत्ता हैं|

देश देशान्तर से संगत आ कर इस पवित्र गुरु स्थान पर दर्शन व सेवा करते हैं| श्रधालुओं  की मनोकामनाए पूरी होती हैं|

मान्यता पीपल साहिब

ऐसी मान्यता है कि सिखों के पहले गुरु गुरुनानक देव ने सन् 1515 में कैलाश पर्वत की यात्रा के दौरान नानकमत्ता का भी भ्रमण किया था । गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब में एक पीपल का सुखा पेड था | जिसके निचे बैठ के गुरुनानक देव जी अपना आसन जमा लिया करते थे |

यह भी कहा जाता है कि गुरू जी के पवित्र चरण पड़ते ही यह पीपल का वृक्ष हरा-भरा हो गया । रात के समय योगियों ने अपनी योग शक्ति के द्वारा आंधी और बरसात शुरू कर दी और पीपल का वृक्ष हवा में ऊपर को उड़ने लगा। यह देकर गुरू नानकदेव जी ने इस पीपल के वृक्ष पर अपना पंजा लगा दिया जिसके कारण वृक्ष यहीं पर रुक गया। आज भी इस वृक्ष की जड़ें जमीन से 15 फीट ऊपर देखी जा सकती हैं। इसे आज लोग पंजा साहिब के नाम से जानते हैं।





गुरूनानक जी के यहाँ से चले जाने के उपरान्त कालान्तर में इस पीपल के पेड़ में आग लगा दी और इस पीपल के पेड़ को अपने कब्जे में लेने का प्रयास किया। उस समय बाबा अलमस्त जी यहाँ के सेवादार थे । उन्हें भी सिद्धों ने मार-पीटकर भगा दिया । सिक्खों के छठे गुरू हरगोविन्द साहिब को जब इस घटना की जानकारी मिली तो वे यहाँ पधारे और केसर के छींटे मार कर इस पीपल के वृक्ष को पुनः हरा-भरा कर दिया। आज भी इस पीपल के हरेक पत्ते पर केशर के पीले निशान पाये जाते हैं। गुरुद्वारे के अंदर एक सरोवर है, जहां अनेक श्रद्धालु आकर स्नान करते है फिर गुरुद्वारे में मथा टेकने जाते हैं और बाबा की कृपा पाते हैं तथा प्रत्येक वर्ष यहां दिवाली की अमावस्या से विशाल मेले का आयोजन किया जाता है । उस समय गुरुद्वारे व नगर की साज- सज्जा देखने लायक होती है । नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा में लगने वाला दीपावली का मेला भी इस क्षेत्र का विशालतम मेला माना जाता है एवम् प्रतिदिन गुरुद्वारे में लंगर की व्यवस्था की जाती है |

Google Map Of Nanakmatta Gurudwara Sahib






Nanakmatta Sahib In 360 Degree






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