Yamuna River Uttarakhand यमुना नदी उत्तराखंड
नमस्कार दोस्तों आज हम आपको ‘उत्तराखंड दर्शन’ के इस पोस्ट में उत्तरकाशी जिले में स्थित (Yamuna River) यमुना नदी के बारे में बताने जा रहे है यदि आप (Yamuna River) यमुना नदी के बारे में जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक पढ़े !
About Yamuna River यमुना नदी के बारे में-ः
उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित यमुना नदी, बंदरपूंछ के दक्षिणी ढाल पर स्थित यमुनोत्री हिमानी से उत्पन्न होती है। और प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा से मिल जाती है।
यमुना नदी की ऊंचाई समुंद्रतल से लगभग 6,316 मीटर है तथा कुल लम्बाई लगभग 1,375 किलोमीटर है।
यमुना नदी की सहायक नदियों में से चम्बल, सेंगर सिंध, बतवा और केन उल्लेखनीय है। यमुना के तटवर्ती नगरों में दिल्ली और आगरा के अतिरिक्त इटावा, काल्पी, हमीरपुर और प्रयाग मुख्य है। प्रयाग में यमुना एक विशाल नदी के रूप में प्रस्तुत होती है।
यमुना नदी के उद्गमस्थल-ः
यमुना नदी यमनोत्री ग्लेशियर से निकलती है। जिस जगह से यमुना नदी निकलती है इस जगह का उल्लेख महाभारत के वन पर्व या विराट पर्व में किया गया हैं |
यमुना नदी का उद्गमस्थल कालिंद पर्वत या कालिंदी पर्वत बताया गया है। इसी वजह से यमुना नदी का प्राचीन नाम कालिंदनदी या कालिंदजा है। महाभारत के अलावा, अर्थवेद ऋग्वेद में भी यमुना नदी का वर्णन किया गया है। कालिन नदी शब्द सम्बधिंत है सूर्य से कालिंदी का तात्पर्य है। सूर्य की पुत्री ,
यमुना नदी की पौराणिक मान्यता-ः
यमुना नदी की पौराणिक मान्यता है। कि यमुना को भगवान सूर्य की पुत्री कहा जाता है सूर्य की पुत्री होने के कारण इसका नाम सूर्यतनया भी है और यमराज की बहन होने के कारण इसका एक नाम यमी भी है।
Yamnotri Temple यमुनोत्री धाम-
हिमालय की पर्वत श्रंख्लाओ में बसा ”यमुनोत्री धाम” हिन्दुओ के चार धामों में से एक है यमुनोत्री धाम का इतिहास
यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल हिमालय के पश्चिम में समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है यह मंदिर चार धाम यात्रा का पहला धाम अर्थात यात्रा की शुरूआत इस स्थान से होती है तथा यह चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है ।
यमुनोत्री धाम का इतिहास यानी मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने सन 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए बनवाया था |
यमुनोत्री मंदिर भुकम्प से एक बार पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है
और इस मंदिर का पुनः निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया के द्वारा 19वीं सदी में करवाया गया था।
यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुयी बर्फ की एक झील और हिमनंद चंपासर ग्लेशियर है जो समुन्द्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है
यमुना नदी के साथ साथ यहां पर दिव्य कुण्ड भी है। जिसकी मुख्य मंदिर से पहले पूजा की जाती है। उसकी के साथ सूर्यकुण्ड भी है। जिसका पानी बहुत ही गर्म है। यहां पर श्रद्धालु चावल व आलू पोटली में बांध कर पानी में डालते है और वह गर्म पानी होने के कारण पक जाता है जिसे श्रद्धालु प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते है।
यहां और भी कई गर्म कुण्ड है जिसमे श्रद्धालु स्नान करते है। यमनोत्री धाम, हर साल अप्रैल या मई में अक्षय तृतीया के दिन खुलता है और दिपावली के दूसरे दिन यह बंद कर दिया जाता है। क्योकिं इस दौरान ये पूरे 6 महीने तक बर्फ से ढका रहता है।
ऋषिगंगा-
- यमुना नदी यमनोत्री से होते हुए त्रषिगंगा में मिलती है
हनुमानगंगा-
- यहां पर हनुमानगंगा, हनुमान चट्टी में यमुना नदी से मिलती है। वैसे तो यमुना नदी छोटे-छोटे कई नदियों से मिलती रहती है। इन नदियों का पानी अपने में समा कर यमुना नदी उत्तरकाशी से पहुचती है सीधे देहरादून, और देहरादून में टोंस नदी यमुना नदी से मिलती है
- टोंस यमुना नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। टोंस नदी दो नदियों से मिलकर बनी है। रूपिन और सूपिन, सूपिन नदी, बन्दर पूंछ के उत्तरी ढाल में स्थित स्वर्गारोहणी ग्लेशियर से निकलती है। वही रूपिन नदी, हिमांचल प्रदेश के डोडरा क्वार से निकलती है। ये दोनों नदियां उत्तरकाशी जिले में नेटवाड़ नामक स्थान पर मिलकर वहां से आगे टोंस नदी में मिलती है। टोंस नदी की लम्बाई 148 किलोमीटर हैं |